कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

۞وَمَا كَانَ لِبَشَرٍ أَن يُكَلِّمَهُ ٱللَّهُ إِلَّا وَحۡيًا أَوۡ مِن وَرَآيِٕ حِجَابٍ أَوۡ يُرۡسِلَ رَسُولٗا فَيُوحِيَ بِإِذۡنِهِۦ مَا يَشَآءُۚ إِنَّهُۥ عَلِيٌّ حَكِيمٞ

और किसी मनुष्य के लिए संभव नहीं कि अल्लाह उससे बात करे, परंतु वह़्य[34] के द्वारा, अथवा पर्दे के पीछे से, अथवा यह कि कोई दूत (फ़रिश्ता) भेजे, फिर वह उसकी अनुमति से वह़्य करे, जो कुछ वह चाहे। निःसंदेह वह सबसे ऊँचा, पूर्ण हिकमत वाला है।

तफ़्सीर:

34. वह़्य का अर्थ, संकेत करना या गुप्त रूप से बात करना है। अर्थात अल्लाह अपने रसूलों को आदेश और निर्देश इस प्रकार देता है, जिसे कोई दूसरा व्यक्ति सुन नहीं सकता। जिसके तीन रूप होते हैं : प्रथम : रसूल के दिल में सीधे अपना ज्ञान भर दे। दूसरा : पर्दे के पीछे से बात करें, किंतु वह दिखाई न दे। तीसरा : फ़रिश्ते के द्वारा अपनी बात रसूल तक गुप्त रूप से पहुँचा दे। इनमें पहले और तीसरे रूप में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास वह़्य उतरती थी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 2)

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 51

وَكَذَٰلِكَ أَوۡحَيۡنَآ إِلَيۡكَ رُوحٗا مِّنۡ أَمۡرِنَاۚ مَا كُنتَ تَدۡرِي مَا ٱلۡكِتَٰبُ وَلَا ٱلۡإِيمَٰنُ وَلَٰكِن جَعَلۡنَٰهُ نُورٗا نَّهۡدِي بِهِۦ مَن نَّشَآءُ مِنۡ عِبَادِنَاۚ وَإِنَّكَ لَتَهۡدِيٓ إِلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٖ

और इसी प्रकार हमने आपकी ओर अपने आदेश से एक रूह़ (क़ुरआन) की वह़्य की। आप नहीं जानते थे कि पुस्तक क्या है और न यह कि ईमान[35] क्या है। परंतु हमने उसे एक ऐसा प्रकाश बनाया दिया है, जिसके द्वारा हम अपने बंदों में से जिसे चाहते हैं, मार्ग दिखाते हैं। और निःसंदेह आप सीधी राह[36] की ओर मार्गदर्शन करते हैं।

तफ़्सीर:

35. मक्का वासियों को यह आश्चर्य था कि मनुष्य अल्लाह का नबी कैसे हो सकता है? इसपर क़ुरआन बता रहा है कि आप नबी होने से पहले न तो किसी आकाशीय पुस्तक से अवगत थे और न कभी ईमान की बात ही आपके विचार में आई। और यह दोनों बातें ऐसी थीं जिनका मक्कावासी भी इनकार नहीं कर सकते थे। और यही आपका अपढ़ होना आपके सत्य नबी होने का प्रमाण है। जिसे क़ुरआन की अनेक आयतों में वर्णन किया गया है। 36. सीधी राह से अभिप्राय सत्धर्म इस्लाम है।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 52

صِرَٰطِ ٱللَّهِ ٱلَّذِي لَهُۥ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۗ أَلَآ إِلَى ٱللَّهِ تَصِيرُ ٱلۡأُمُورُ

उस अल्लाह की राह की ओर कि जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है, उसी का है। सुनो! सभी मामले अल्लाह ही की ओर लौटते हैं।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 53

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