कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

فَرِحَ ٱلۡمُخَلَّفُونَ بِمَقۡعَدِهِمۡ خِلَٰفَ رَسُولِ ٱللَّهِ وَكَرِهُوٓاْ أَن يُجَٰهِدُواْ بِأَمۡوَٰلِهِمۡ وَأَنفُسِهِمۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ وَقَالُواْ لَا تَنفِرُواْ فِي ٱلۡحَرِّۗ قُلۡ نَارُ جَهَنَّمَ أَشَدُّ حَرّٗاۚ لَّوۡ كَانُواْ يَفۡقَهُونَ,

वे लोग जो पीछे छोड़ दिए[40] गए, अल्लाह के रसूल के पीछे अपने बैठ रहने पर खुश हो गए और उन्होंने नापसंद किया कि अपने धनों और अपने प्राणों के साथ अल्लाह के मार्ग में जिहाद करें और उन्होंने (अन्य लोगों से) कहा कि गर्मी में मत निकलो। आप कह दें : जहन्नम की आग कहीं अधिक गर्म है। काश! वे समझते होते।

तफ़्सीर:

40. अर्थात मुनाफ़िक़ जो मदीना में रह गए और तबूक के युद्ध में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ नहीं गए।

सूरह का नाम : At-Tawbah   सूरह नंबर : 9   आयत नंबर: 81

فَلۡيَضۡحَكُواْ قَلِيلٗا وَلۡيَبۡكُواْ كَثِيرٗا جَزَآءَۢ بِمَا كَانُواْ يَكۡسِبُونَ,

तो उन्हें चाहिए कि थोड़ा हँसें और बहुत अधिक रोएँ, उसके बदले जो वे कमाते रहे हैं।

सूरह का नाम : At-Tawbah   सूरह नंबर : 9   आयत नंबर: 82

فَإِن رَّجَعَكَ ٱللَّهُ إِلَىٰ طَآئِفَةٖ مِّنۡهُمۡ فَٱسۡتَـٔۡذَنُوكَ لِلۡخُرُوجِ فَقُل لَّن تَخۡرُجُواْ مَعِيَ أَبَدٗا وَلَن تُقَٰتِلُواْ مَعِيَ عَدُوًّاۖ إِنَّكُمۡ رَضِيتُم بِٱلۡقُعُودِ أَوَّلَ مَرَّةٖ فَٱقۡعُدُواْ مَعَ ٱلۡخَٰلِفِينَ,

तो यदि अल्लाह आपको इन (मुनाफ़िक़ों) के किसी गिरोह की ओर वापस ले आए, फिर वे आपसे (युद्ध में) निकलने की अनुमति माँगें, तो आप कह दें : तुम मेरे साथ कभी नहीं निकलोगे और मेरे साथ मिलकर किसी शत्रु से नहीं लड़ोगे। निःसंदेह तुम प्रथम बार बैठे रहने पर प्रसन्न हुए, अतः पीछे रहने वालों के साथ बैठे रहो।

सूरह का नाम : At-Tawbah   सूरह नंबर : 9   आयत नंबर: 83

وَلَا تُصَلِّ عَلَىٰٓ أَحَدٖ مِّنۡهُم مَّاتَ أَبَدٗا وَلَا تَقُمۡ عَلَىٰ قَبۡرِهِۦٓۖ إِنَّهُمۡ كَفَرُواْ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَمَاتُواْ وَهُمۡ فَٰسِقُونَ,

और उनमें से जो कोई मर जाए, उसका कभी जनाज़ा न पढ़ना और न उसकी क़ब्र पर खड़े होना। निःसंदेह उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल के साथ कुफ़्र किया और इस अवस्था में मरे कि वे अवज्ञाकारी थे।[41]

तफ़्सीर:

41. सह़ीह़ ह़दीस में है कि जब नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मुनाफ़िक़ों के मुखिया अब्दुल्लाह बिन उबय्य का जनाज़ा पढ़ा, तो यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4672)

सूरह का नाम : At-Tawbah   सूरह नंबर : 9   आयत नंबर: 84

وَلَا تُعۡجِبۡكَ أَمۡوَٰلُهُمۡ وَأَوۡلَٰدُهُمۡۚ إِنَّمَا يُرِيدُ ٱللَّهُ أَن يُعَذِّبَهُم بِهَا فِي ٱلدُّنۡيَا وَتَزۡهَقَ أَنفُسُهُمۡ وَهُمۡ كَٰفِرُونَ,

और आपको उनके धन और उनकी संतान भले न लगें। अल्लाह तो यही चाहता है कि उन्हें इनके द्वारा सांसारिक जीवन में यातना दे और उनके प्राण इस हाल में निकलें कि वे काफ़िर हों।

सूरह का नाम : At-Tawbah   सूरह नंबर : 9   आयत नंबर: 85

وَإِذَآ أُنزِلَتۡ سُورَةٌ أَنۡ ءَامِنُواْ بِٱللَّهِ وَجَٰهِدُواْ مَعَ رَسُولِهِ ٱسۡتَـٔۡذَنَكَ أُوْلُواْ ٱلطَّوۡلِ مِنۡهُمۡ وَقَالُواْ ذَرۡنَا نَكُن مَّعَ ٱلۡقَٰعِدِينَ,

तथा जब कोई सूरत उतारी जाती है कि अल्लाह पर ईमान लाओ तथा उसके रसूल के साथ मिलकर जिहाद करो, तो उनमें से धनवान लोग आपसे अनुमति माँगते हैं और कहते हैं : आप हमें छोड़ दें कि हम बैठने वालों के साथ हो जाएँ।

सूरह का नाम : At-Tawbah   सूरह नंबर : 9   आयत नंबर: 86

رَضُواْ بِأَن يَكُونُواْ مَعَ ٱلۡخَوَالِفِ وَطُبِعَ عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ فَهُمۡ لَا يَفۡقَهُونَ,

वे इसपर राज़ी हो गए कि पीछे रहने वाली स्त्रियों के साथ हो जाएँ और उनके दिलों पर मुहर लगा दी गई। अतः वे नहीं समझते।

सूरह का नाम : At-Tawbah   सूरह नंबर : 9   आयत नंबर: 87

لَٰكِنِ ٱلرَّسُولُ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مَعَهُۥ جَٰهَدُواْ بِأَمۡوَٰلِهِمۡ وَأَنفُسِهِمۡۚ وَأُوْلَـٰٓئِكَ لَهُمُ ٱلۡخَيۡرَٰتُۖ وَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ,

परंतु रसूल ने और उन लोगों ने जो उसके साथ ईमान लाए, अपने धनों और अपने प्राणों के साथ जिहाद किया और यही लोग हैं जिनके लिए सब भलाइयाँ हैं और यही सफल होने वाले हैं।

सूरह का नाम : At-Tawbah   सूरह नंबर : 9   आयत नंबर: 88

أَعَدَّ ٱللَّهُ لَهُمۡ جَنَّـٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَاۚ ذَٰلِكَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡعَظِيمُ,

अल्लाह ने उनके लिए ऐसे बाग़ तैयार कर रखे हैं, जिनके नीचे से नहरें बहती हैं। वे उनमें हमेशा रहने वाले हैं। यही बहुत बड़ी सफलता है।

सूरह का नाम : At-Tawbah   सूरह नंबर : 9   आयत नंबर: 89

وَجَآءَ ٱلۡمُعَذِّرُونَ مِنَ ٱلۡأَعۡرَابِ لِيُؤۡذَنَ لَهُمۡ وَقَعَدَ ٱلَّذِينَ كَذَبُواْ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥۚ سَيُصِيبُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ مِنۡهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٞ,

और देहातियों में से बहाना करने वाले लोग आए, ताकि उन्हें (युद्ध में शरीक न होने की) अनुमति दी जाए। तथा वे लोग (अपने घरों में) बैठ रहे, जिन्होंने अल्लाह और उसके रसूल से झूठ बोला। उनमें से उन लोगों को जिन्होंने कुफ़्र किया, जल्द ही दर्दनाक यातना पहुँचेगी।

सूरह का नाम : At-Tawbah   सूरह नंबर : 9   आयत नंबर: 90

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