أَمۡ ءَاتَيۡنَٰهُمۡ كِتَٰبٗا مِّن قَبۡلِهِۦ فَهُم بِهِۦ مُسۡتَمۡسِكُونَ
या हमने उन्हें इससे पहले कोई पुस्तक प्रदान की है? तो वे उसे दृढ़ता से थामने वाले हैं?[1]
तफ़्सीर:
7. अर्थात क़ुरआन से पहले की किसी ईश-पुस्तक में अल्लाह के सिवा किसी और की उपासना की शिक्षा दी ही नहीं गई है कि वे कोई पुस्तक ला सकें।
सूरह का नाम : Az-Zukhruf सूरह नंबर : 43 आयत नंबर: 21
بَلۡ قَالُوٓاْ إِنَّا وَجَدۡنَآ ءَابَآءَنَا عَلَىٰٓ أُمَّةٖ وَإِنَّا عَلَىٰٓ ءَاثَٰرِهِم مُّهۡتَدُونَ
बल्कि उन्होंने कहा : निःसंदेह हमने अपने बाप-दादा को एक मार्ग पर पाया है और निःसंदेह हम उन्हीं के पदचिह्नों पर राह पाने वाले हैं।
सूरह का नाम : Az-Zukhruf सूरह नंबर : 43 आयत नंबर: 22
وَكَذَٰلِكَ مَآ أَرۡسَلۡنَا مِن قَبۡلِكَ فِي قَرۡيَةٖ مِّن نَّذِيرٍ إِلَّا قَالَ مُتۡرَفُوهَآ إِنَّا وَجَدۡنَآ ءَابَآءَنَا عَلَىٰٓ أُمَّةٖ وَإِنَّا عَلَىٰٓ ءَاثَٰرِهِم مُّقۡتَدُونَ
तथा इसी प्रकार, हमने आपसे पूर्व जिस बस्ती में भी कोई सावधान करने वाला भेजा, तो वहाँ के संपन्न लोगों ने यही कहा कि निःसंदेह हमने अपने बाप-दादा को एक रीति पर पाया और निःसंदेह हम उन्हीं के पद्चिह्नों का अनुसरण करने वाले हैं।[8]
तफ़्सीर:
8. आयत का भावार्थ यह है कि प्रत्येक युग के काफ़िर अपने पूर्वजों के अनुसरण के कारण अपने शिर्क और अंधविश्वास पर क़ायम रहे।
सूरह का नाम : Az-Zukhruf सूरह नंबर : 43 आयत नंबर: 23
۞قَٰلَ أَوَلَوۡ جِئۡتُكُم بِأَهۡدَىٰ مِمَّا وَجَدتُّمۡ عَلَيۡهِ ءَابَآءَكُمۡۖ قَالُوٓاْ إِنَّا بِمَآ أُرۡسِلۡتُم بِهِۦ كَٰفِرُونَ
उसने कहा : और क्या यदि मैं तुम्हारे पास उससे अधिक सीधा मार्ग ले आऊँ, जिसपर तुमने अपने बाप-दादा को पाया है? उन्होंने कहा : निःसंदेह हम उसका इनकार करने वाले हैं, जिसके साथ तुम भेजे गए हो।
सूरह का नाम : Az-Zukhruf सूरह नंबर : 43 आयत नंबर: 24
فَٱنتَقَمۡنَا مِنۡهُمۡۖ فَٱنظُرۡ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلۡمُكَذِّبِينَ
अंततः हमने उनसे बदला लिया। तो देख लो कि झुठलाने वालों का परिणाम कैसा हुआ।
सूरह का नाम : Az-Zukhruf सूरह नंबर : 43 आयत नंबर: 25
وَإِذۡ قَالَ إِبۡرَٰهِيمُ لِأَبِيهِ وَقَوۡمِهِۦٓ إِنَّنِي بَرَآءٞ مِّمَّا تَعۡبُدُونَ
तथा याद करो, जब इबराहीम ने अपने पिता तथा अपनी जाति से कहा : निःसंदेह मैं उन चीज़ों से बरी हूँ, जिनकी तुम इबादत करते हो।
सूरह का नाम : Az-Zukhruf सूरह नंबर : 43 आयत नंबर: 26
إِلَّا ٱلَّذِي فَطَرَنِي فَإِنَّهُۥ سَيَهۡدِينِ
सिवाय उसके जिसने मुझे पैदा किया। अतः निःसंदेह वह मुझे अवश्य मार्ग दिखाएगा।
सूरह का नाम : Az-Zukhruf सूरह नंबर : 43 आयत नंबर: 27
وَجَعَلَهَا كَلِمَةَۢ بَاقِيَةٗ فِي عَقِبِهِۦ لَعَلَّهُمۡ يَرۡجِعُونَ
तथा उसने इस (एकेश्वरवाद की बात)[9] को अपने पिछलों में बाक़ी रहने वाली बात बना दिया। ताकि वे लौट आएँ।
तफ़्सीर:
9. आयत 26 से 28 तक का भावार्थ यह है कि यदि तुम्हें अपने पूर्वजों ही का अनुसरण करना है, तो अपने पूर्वज इबराहीम (अलैहिस्सलाम) का अनुसरण करो। जो शिर्क से विरक्त तथा एकेश्वरवादी थे। और अपनी संतान में एकेश्वरवाद (तौह़ीद) की शिक्षा छोड़ गए ताकि लोग शिर्क से बचते रहें।
सूरह का नाम : Az-Zukhruf सूरह नंबर : 43 आयत नंबर: 28
بَلۡ مَتَّعۡتُ هَـٰٓؤُلَآءِ وَءَابَآءَهُمۡ حَتَّىٰ جَآءَهُمُ ٱلۡحَقُّ وَرَسُولٞ مُّبِينٞ
बल्कि, मैंने इन्हें तथा इनके बाप-दादा को जीवन का सामान दिया। यहाँ तक कि उनके पास सत्य (क़ुरआन) और खोलकर बयान करने वाला रसूल[10] आ गया।
तफ़्सीर:
10. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम।
सूरह का नाम : Az-Zukhruf सूरह नंबर : 43 आयत नंबर: 29
وَلَمَّا جَآءَهُمُ ٱلۡحَقُّ قَالُواْ هَٰذَا سِحۡرٞ وَإِنَّا بِهِۦ كَٰفِرُونَ
तथा जब उनके पास सत्य आ गया, तो उन्होंने कहा : यह तो जादू है तथा निःसंदेह हम इसका इनकार करते हैं।
सूरह का नाम : Az-Zukhruf सूरह नंबर : 43 आयत नंबर: 30