कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

يُطَافُ عَلَيۡهِم بِصِحَافٖ مِّن ذَهَبٖ وَأَكۡوَابٖۖ وَفِيهَا مَا تَشۡتَهِيهِ ٱلۡأَنفُسُ وَتَلَذُّ ٱلۡأَعۡيُنُۖ وَأَنتُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ

उनपर सोने की थालें तथा प्याले फिराए जाएँगे और वहाँ वह सब कुछ होगा, जो दिलों को भाए और जिससे आँखें आनंदित हों और तुम उसमें सदा निवास करने वाले हो।

सूरह का नाम : Az-Zukhruf   सूरह नंबर : 43   आयत नंबर: 71

وَتِلۡكَ ٱلۡجَنَّةُ ٱلَّتِيٓ أُورِثۡتُمُوهَا بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ

और यही वह जन्नत है, जिसके तुम उत्तराधिकारी बनाए गए हो, उसके बदले में जो तुम कार्य करते थे।

सूरह का नाम : Az-Zukhruf   सूरह नंबर : 43   आयत नंबर: 72

لَكُمۡ فِيهَا فَٰكِهَةٞ كَثِيرَةٞ مِّنۡهَا تَأۡكُلُونَ

तुम्हारे लिए इसमें बहुत-से मेवे हैं, जिनसे तुम खाते रहोगे।

सूरह का नाम : Az-Zukhruf   सूरह नंबर : 43   आयत नंबर: 73

إِنَّ ٱلۡمُجۡرِمِينَ فِي عَذَابِ جَهَنَّمَ خَٰلِدُونَ

निःसंदेह अपराधी लोग जहन्नम की यातना में सदैव रहने वाले हैं।

सूरह का नाम : Az-Zukhruf   सूरह नंबर : 43   आयत नंबर: 74

لَا يُفَتَّرُ عَنۡهُمۡ وَهُمۡ فِيهِ مُبۡلِسُونَ

वह (यातना) उनसे हल्की नहीं की जाएगी तथा वे उसी में निराश पड़े रहेंगे।

सूरह का नाम : Az-Zukhruf   सूरह नंबर : 43   आयत नंबर: 75

وَمَا ظَلَمۡنَٰهُمۡ وَلَٰكِن كَانُواْ هُمُ ٱلظَّـٰلِمِينَ

और हमने उनपर अत्याचार नहीं किया, बल्कि वे स्वयं ही अत्याचारी थे।

सूरह का नाम : Az-Zukhruf   सूरह नंबर : 43   आयत नंबर: 76

وَنَادَوۡاْ يَٰمَٰلِكُ لِيَقۡضِ عَلَيۡنَا رَبُّكَۖ قَالَ إِنَّكُم مَّـٰكِثُونَ

तथा वे पुकारेंगे : ऐ मालिक![21] तेरा पालनहार हमारा काम तमाम ही कर दे। वह कहेगा : निःसंदेह तुम (यहीं) ठहरने वाले हो।

तफ़्सीर:

21. मालिक, नरक के अधिकारी फ़रिश्ते का नाम है।

सूरह का नाम : Az-Zukhruf   सूरह नंबर : 43   आयत नंबर: 77

لَقَدۡ جِئۡنَٰكُم بِٱلۡحَقِّ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَكُمۡ لِلۡحَقِّ كَٰرِهُونَ

निःसंदेह हम तो तुम्हारे पास सत्य लेकर आए हैं, लेकिन तुममें से अधिकतर लोग सत्य को नापसंद करने वाले हैं।

सूरह का नाम : Az-Zukhruf   सूरह नंबर : 43   आयत नंबर: 78

أَمۡ أَبۡرَمُوٓاْ أَمۡرٗا فَإِنَّا مُبۡرِمُونَ

या उन्होंने किसी कार्य का दृढ़ निश्चय कर लिया है? तो निःसंदेह हम भी दृढ़ उपाय करने वाले हैं।

सूरह का नाम : Az-Zukhruf   सूरह नंबर : 43   आयत नंबर: 79

أَمۡ يَحۡسَبُونَ أَنَّا لَا نَسۡمَعُ سِرَّهُمۡ وَنَجۡوَىٰهُمۚ بَلَىٰ وَرُسُلُنَا لَدَيۡهِمۡ يَكۡتُبُونَ

या वे समझते हैं कि हम उनके रहस्य और उनकी कानाफूसी को नहीं सुनते? क्यों नहीं, और हमारे भेजे हुए (फ़रिश्ते) उनके पास लिखते रहते हैं।

सूरह का नाम : Az-Zukhruf   सूरह नंबर : 43   आयत नंबर: 80

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