فَأَصَابَهُمۡ سَيِّـَٔاتُ مَا كَسَبُواْۚ وَٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ مِنۡ هَـٰٓؤُلَآءِ سَيُصِيبُهُمۡ سَيِّـَٔاتُ مَا كَسَبُواْ وَمَا هُم بِمُعۡجِزِينَ
तो उनपर उनके कर्मों की बुराइयाँ आ पड़ीं। और इनमें से जिन लोगों ने अत्याचार किया, उनपर उनके कर्मों की बुराइयाँ आ पड़ेंगी। और वे (हमें) विवश करने वाले नहीं हैं।
सूरह का नाम : Az-Zumar सूरह नंबर : 39 आयत नंबर: 51
أَوَلَمۡ يَعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ يَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن يَشَآءُ وَيَقۡدِرُۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يُؤۡمِنُونَ
क्या उन्हें मालूम नहीं कि अल्लाह जिसके लिए चाहता है, रोज़ी कुशादा कर देता है, और (जिसे चाहता है) नापकर देता है? निश्चय इसमें बहुत-सी निशानियाँ हैं, उन लोगों के लिए, जो ईमान लाते हैं।
सूरह का नाम : Az-Zumar सूरह नंबर : 39 आयत नंबर: 52
۞قُلۡ يَٰعِبَادِيَ ٱلَّذِينَ أَسۡرَفُواْ عَلَىٰٓ أَنفُسِهِمۡ لَا تَقۡنَطُواْ مِن رَّحۡمَةِ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ يَغۡفِرُ ٱلذُّنُوبَ جَمِيعًاۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلۡغَفُورُ ٱلرَّحِيمُ
(ऐ नबी!) आप मेरे उन बंदों से कह दें, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार किए हैं कि तुम अल्लाह की दया से निराश न हो।[11] निःसंदेह अल्लाह सब पापों को क्षमा कर देता है। निःसंदेह वही तो अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।
तफ़्सीर:
11. नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास कुछ मुश्रिक आए जिन्होंने बहुत जानें मारीं और बहुत व्यभिचार किए थे। और कहा वास्तव में, आप जो कुछ कह रहे हैं वह बहुत अच्छा है। तो आप बताएँ कि हमने जो कुकर्म किए हैं उनके लिए कोई कफ़्फ़ारा (प्रायश्चित) है? उसी पर क़ुरआन की आयत 68 और यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4810)
सूरह का नाम : Az-Zumar सूरह नंबर : 39 आयत नंबर: 53
وَأَنِيبُوٓاْ إِلَىٰ رَبِّكُمۡ وَأَسۡلِمُواْ لَهُۥ مِن قَبۡلِ أَن يَأۡتِيَكُمُ ٱلۡعَذَابُ ثُمَّ لَا تُنصَرُونَ
तथा अपने पालनहार की ओर झुक पड़ो और उसके आज्ञाकारी हो जाओ, इससे पहले कि तुमपर यातना आ जाए, फिर तुम्हारी सहायता न की जाए।
सूरह का नाम : Az-Zumar सूरह नंबर : 39 आयत नंबर: 54
وَٱتَّبِعُوٓاْ أَحۡسَنَ مَآ أُنزِلَ إِلَيۡكُم مِّن رَّبِّكُم مِّن قَبۡلِ أَن يَأۡتِيَكُمُ ٱلۡعَذَابُ بَغۡتَةٗ وَأَنتُمۡ لَا تَشۡعُرُونَ
तथा उस सबसे उत्तम वाणी का पालन करो, जो अल्लाह की ओर से तुम्हारी तरफ़ उतारी गई है, इससे पूर्व कि तुमपर यातना आ पड़े और तुम्हें एहसास तक न हो।
सूरह का नाम : Az-Zumar सूरह नंबर : 39 आयत नंबर: 55
أَن تَقُولَ نَفۡسٞ يَٰحَسۡرَتَىٰ عَلَىٰ مَا فَرَّطتُ فِي جَنۢبِ ٱللَّهِ وَإِن كُنتُ لَمِنَ ٱلسَّـٰخِرِينَ
(ऐसा न हो कि) कोई व्यक्ति कहे कि अफ़सोस है उस कोताही पर, जो मैंने अल्लाह के हक में की तथा मैं उपहास करने वालों में रह गया।
सूरह का नाम : Az-Zumar सूरह नंबर : 39 आयत नंबर: 56
أَوۡ تَقُولَ لَوۡ أَنَّ ٱللَّهَ هَدَىٰنِي لَكُنتُ مِنَ ٱلۡمُتَّقِينَ
या फिर कहे कि यदि अल्लाह मुझे सीधा रास्ता दिखाता, तो मैं डरने वालों में से हो जाता।
सूरह का नाम : Az-Zumar सूरह नंबर : 39 आयत नंबर: 57
أَوۡ تَقُولَ حِينَ تَرَى ٱلۡعَذَابَ لَوۡ أَنَّ لِي كَرَّةٗ فَأَكُونَ مِنَ ٱلۡمُحۡسِنِينَ
या जब यातना को देख ले, तो कहने लगे कि अगर मुझे (संसार की ओर) वापस जाने का अवसर मिले, तो मैं अवश्य सदाचारियों में से हो जाऊँगा।
सूरह का नाम : Az-Zumar सूरह नंबर : 39 आयत नंबर: 58
بَلَىٰ قَدۡ جَآءَتۡكَ ءَايَٰتِي فَكَذَّبۡتَ بِهَا وَٱسۡتَكۡبَرۡتَ وَكُنتَ مِنَ ٱلۡكَٰفِرِينَ
हाँ, तुम्हारे पास मेरी निशानियाँ आईं, तो तुमने उन्हें झुठला दिया और अभिमान किया तथा तुम थे ही काफ़िरों में से।
सूरह का नाम : Az-Zumar सूरह नंबर : 39 आयत नंबर: 59
وَيَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ تَرَى ٱلَّذِينَ كَذَبُواْ عَلَى ٱللَّهِ وُجُوهُهُم مُّسۡوَدَّةٌۚ أَلَيۡسَ فِي جَهَنَّمَ مَثۡوٗى لِّلۡمُتَكَبِّرِينَ
और क़ियामत के दिन आप उन लोगों को देखेंगे, जिन्होंने अल्लाह पर झूठ बोला कि उनके चेहरे काले होंगे। तो क्या अभिमानियों का ठिकाना जहन्नम में नहीं है?
सूरह का नाम : Az-Zumar सूरह नंबर : 39 आयत नंबर: 60