कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

وَقَالُواْ لِجُلُودِهِمۡ لِمَ شَهِدتُّمۡ عَلَيۡنَاۖ قَالُوٓاْ أَنطَقَنَا ٱللَّهُ ٱلَّذِيٓ أَنطَقَ كُلَّ شَيۡءٖۚ وَهُوَ خَلَقَكُمۡ أَوَّلَ مَرَّةٖ وَإِلَيۡهِ تُرۡجَعُونَ

और वे अपनी खालों से कहेंगे : तुमने हमारे विरुद्ध क्यों गवाही दी? तो वे उत्तर देंगी : हमें उसी अल्लाह ने बोलने की शक्ति प्रदान की, जिसने प्रत्येक वस्तु को बोलने की शक्ति दी है। तथा उसी ने तुम्हें प्रथम बार पैदा किया और तुम उसी की ओर लौटाए जाओगे।

सूरह का नाम : Fussilat   सूरह नंबर : 41   आयत नंबर: 21

وَمَا كُنتُمۡ تَسۡتَتِرُونَ أَن يَشۡهَدَ عَلَيۡكُمۡ سَمۡعُكُمۡ وَلَآ أَبۡصَٰرُكُمۡ وَلَا جُلُودُكُمۡ وَلَٰكِن ظَنَنتُمۡ أَنَّ ٱللَّهَ لَا يَعۡلَمُ كَثِيرٗا مِّمَّا تَعۡمَلُونَ

तथा तुम (पाप करते समय) छिपते[7] भी नहीं थे कि कहीं तुम्हारे कान, तुम्हारी आँखें और तुम्हारी खालें तुम्हारे विरुद्ध गवाही न दे दें। बल्कि, तुम यह समझते रहे कि अल्लाह उनमें से अधिकतर बातों को जानता ही नहीं, जो तुम करते हो।

तफ़्सीर:

7. आदरणीय अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि ख़ाना काबा के पास एक घर में दो क़ुरैशी तथा एक सक़फ़ी अथवा दो सक़फ़ी और एक क़ुरैशी थे। तो एक ने दूसरे से कहा कि तुम समझते हो कि अल्लाह हमारी बातें सुन रहा है? किसी ने कहा : यदि कुछ सुनता है तो सब कुछ सुनता है। उसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4816, 4817, 7521)

सूरह का नाम : Fussilat   सूरह नंबर : 41   आयत नंबर: 22

وَذَٰلِكُمۡ ظَنُّكُمُ ٱلَّذِي ظَنَنتُم بِرَبِّكُمۡ أَرۡدَىٰكُمۡ فَأَصۡبَحۡتُم مِّنَ ٱلۡخَٰسِرِينَ

तुम्हारी इसी दुर्भावना ने, जो तुमने अपने पालनहार के प्रति रखा, तुम्हें विनष्ट कर दिया और तुम घाटा उठाने वालों में से हो गए।

सूरह का नाम : Fussilat   सूरह नंबर : 41   आयत नंबर: 23

فَإِن يَصۡبِرُواْ فَٱلنَّارُ مَثۡوٗى لَّهُمۡۖ وَإِن يَسۡتَعۡتِبُواْ فَمَا هُم مِّنَ ٱلۡمُعۡتَبِينَ

अब यदि वे धैर्य रखें, तो भी जहन्नम ही उनका ठिकाना है। और यदि वे क्षमा माँगें, तो भी वे क्षमा नहीं किए जाएँगे।

सूरह का नाम : Fussilat   सूरह नंबर : 41   आयत नंबर: 24

۞وَقَيَّضۡنَا لَهُمۡ قُرَنَآءَ فَزَيَّنُواْ لَهُم مَّا بَيۡنَ أَيۡدِيهِمۡ وَمَا خَلۡفَهُمۡ وَحَقَّ عَلَيۡهِمُ ٱلۡقَوۡلُ فِيٓ أُمَمٖ قَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلِهِم مِّنَ ٱلۡجِنِّ وَٱلۡإِنسِۖ إِنَّهُمۡ كَانُواْ خَٰسِرِينَ

और हमने उनके लिए कुछ साथी नियुक्त कर दिए, तो उन्होंने उनके अगले और पिछले कामों को उनके लिए शोभित बनाकर पेश किया। तथा उनपर भी जिन्नों और इनसानों के उन समूहों के साथ, जो उनसे पहले गुज़र चुके थे, अल्लाह (की यातना) का वादा सिद्ध हो गया। निश्चय ही वे घाटा उठाने वाले थे।

सूरह का नाम : Fussilat   सूरह नंबर : 41   आयत नंबर: 25

وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَا تَسۡمَعُواْ لِهَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ وَٱلۡغَوۡاْ فِيهِ لَعَلَّكُمۡ تَغۡلِبُونَ

तथा काफ़िरों ने कहा[8] कि इस क़ुरआन को न सुनो और (जब पढ़ा जाए तो) इसमें शोर करो। ताकि तुम प्रभावशाली रहो।

तफ़्सीर:

8. मक्का के काफ़िरों ने जब देखा कि लोग क़ुरआन सुनकर प्रभावित हो रहे हैं, तो उन्होंने यह योजना बनाई।

सूरह का नाम : Fussilat   सूरह नंबर : 41   आयत नंबर: 26

فَلَنُذِيقَنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ عَذَابٗا شَدِيدٗا وَلَنَجۡزِيَنَّهُمۡ أَسۡوَأَ ٱلَّذِي كَانُواْ يَعۡمَلُونَ

अतः हम अवश्य ही उन लोगों को जो काफ़िर हो गए, कठोर यातना का मज़ा चखाएँगे, तथा निश्चय ही हम उन्हें उन दुष्कर्मों का बदला अवश्य देंगे, जो वे किया करते थे।

सूरह का नाम : Fussilat   सूरह नंबर : 41   आयत नंबर: 27

ذَٰلِكَ جَزَآءُ أَعۡدَآءِ ٱللَّهِ ٱلنَّارُۖ لَهُمۡ فِيهَا دَارُ ٱلۡخُلۡدِ جَزَآءَۢ بِمَا كَانُواْ بِـَٔايَٰتِنَا يَجۡحَدُونَ

यह अल्लाह के शत्रुओं का प्रतिकार जहन्नम है। उनके लिए उसी में स्थायी घर होगा। यह उसका बदला है, जो वे हमारी अयतों का इनकार किया करते थे।

सूरह का नाम : Fussilat   सूरह नंबर : 41   आयत नंबर: 28

وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ رَبَّنَآ أَرِنَا ٱلَّذَيۡنِ أَضَلَّانَا مِنَ ٱلۡجِنِّ وَٱلۡإِنسِ نَجۡعَلۡهُمَا تَحۡتَ أَقۡدَامِنَا لِيَكُونَا مِنَ ٱلۡأَسۡفَلِينَ

तथा जिन लोगों ने कुफ़्र किया, वे कहेंगे : ऐ हमारे पालनहर! हमें जिन्नों और इनसानों में से वे लोग दिखा दे, जिन्होंने हमें गुमराह किया था, हम उन्हें अपने पैरों तले रौंद डालें। ताकि वे सबसे निचले लोगों में से हो जाएँ।

सूरह का नाम : Fussilat   सूरह नंबर : 41   आयत नंबर: 29

إِنَّ ٱلَّذِينَ قَالُواْ رَبُّنَا ٱللَّهُ ثُمَّ ٱسۡتَقَٰمُواْ تَتَنَزَّلُ عَلَيۡهِمُ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ أَلَّا تَخَافُواْ وَلَا تَحۡزَنُواْ وَأَبۡشِرُواْ بِٱلۡجَنَّةِ ٱلَّتِي كُنتُمۡ تُوعَدُونَ

निःसंदेह जिन लोगों ने कहा : हमारा पालनहार केवल अल्लाह है, फिर उसपर मज़बूती से जमे रहे[9], उनपर फ़रिश्ते उतरते[10] हैं कि भय न करो और न शोकाकुल हो तथा उस जन्नत से खुश हो जाओ, जिसका तुमसे वादा किया जाता था।

तफ़्सीर:

9. अर्थात प्रत्येक दशा में आज्ञापालन तथा एकेश्वरवाद पर स्थिर रहे। 10. उनके मरण के समय।

सूरह का नाम : Fussilat   सूरह नंबर : 41   आयत नंबर: 30

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