कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

نَحۡنُ أَوۡلِيَآؤُكُمۡ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا وَفِي ٱلۡأٓخِرَةِۖ وَلَكُمۡ فِيهَا مَا تَشۡتَهِيٓ أَنفُسُكُمۡ وَلَكُمۡ فِيهَا مَا تَدَّعُونَ

हम सांसारिक जीवन में भी तुम्हारे सहायक हैं तथा आख़िरत में भी,और तुम्हारे लिए उस (जन्नत) में वह कुछ है, जो तुम्हारे दिल चाहेंगे तथा उसमें तुम्हारे लिए वह कुछ है, जिसकी तुम माँग करोगे।

सूरह का नाम : Fussilat   सूरह नंबर : 41   आयत नंबर: 31

نُزُلٗا مِّنۡ غَفُورٖ رَّحِيمٖ

(यह) अति क्षमाशील, असीम दयावान् की ओर से आतिथ्य है।

सूरह का नाम : Fussilat   सूरह नंबर : 41   आयत नंबर: 32

وَمَنۡ أَحۡسَنُ قَوۡلٗا مِّمَّن دَعَآ إِلَى ٱللَّهِ وَعَمِلَ صَٰلِحٗا وَقَالَ إِنَّنِي مِنَ ٱلۡمُسۡلِمِينَ

और उस व्यक्ति से अच्छी बात किसकी हो सकती है, जिसने अल्लाह की ओर बुलाया तथा सत्कर्म किया और कहा : निःसंदेह मैं मुसलमानों (आज्ञाकारियों) में से हूँ।

सूरह का नाम : Fussilat   सूरह नंबर : 41   आयत नंबर: 33

وَلَا تَسۡتَوِي ٱلۡحَسَنَةُ وَلَا ٱلسَّيِّئَةُۚ ٱدۡفَعۡ بِٱلَّتِي هِيَ أَحۡسَنُ فَإِذَا ٱلَّذِي بَيۡنَكَ وَبَيۡنَهُۥ عَدَٰوَةٞ كَأَنَّهُۥ وَلِيٌّ حَمِيمٞ

भलाई और बुराई बराबर नहीं हो सकते। आप बुराई को ऐसे तरीक़े से दूर करें जो सर्वोत्तम हो। तो सहसा वह व्यक्ति जिसके और आपके बीच बैर है, ऐसा हो जाएगा मानो वह हार्दिक मित्र है।[10]

तफ़्सीर:

10. इस आयत में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को तथा आपके माध्यम से सर्वसाधारण मुसलमानों को यह निर्देश दिया गया है कि बुराई का बदला अच्छाई से तथा अपकार का बदला उपकार से दें। जिसका प्रभाव यह होगा कि अपना शत्रु भी हार्दिक मित्र बन जाएगा।

सूरह का नाम : Fussilat   सूरह नंबर : 41   आयत नंबर: 34

وَمَا يُلَقَّىٰهَآ إِلَّا ٱلَّذِينَ صَبَرُواْ وَمَا يُلَقَّىٰهَآ إِلَّا ذُو حَظٍّ عَظِيمٖ

और यह गुण उन्हीं लोगों को प्राप्त होता है, जो धैर्य से काम लेते हैं तथा यह उसी को प्राप्त होता है, जो बड़ा भाग्यशाली हो।

सूरह का नाम : Fussilat   सूरह नंबर : 41   आयत नंबर: 35

وَإِمَّا يَنزَغَنَّكَ مِنَ ٱلشَّيۡطَٰنِ نَزۡغٞ فَٱسۡتَعِذۡ بِٱللَّهِۖ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡعَلِيمُ

और यदि शैतान आपको उकसाए, तो अल्लाह से शरण माँगिए। निःसंदेह वह सब कुछ सुनने वाला, जानने वाला है।

सूरह का नाम : Fussilat   सूरह नंबर : 41   आयत नंबर: 36

وَمِنۡ ءَايَٰتِهِ ٱلَّيۡلُ وَٱلنَّهَارُ وَٱلشَّمۡسُ وَٱلۡقَمَرُۚ لَا تَسۡجُدُواْ لِلشَّمۡسِ وَلَا لِلۡقَمَرِ وَٱسۡجُدُواْۤ لِلَّهِۤ ٱلَّذِي خَلَقَهُنَّ إِن كُنتُمۡ إِيَّاهُ تَعۡبُدُونَ

तथा उसकी निशानियों में से रात और दिन तथा सूरज और चाँद हैं। तुम न तो सूरज को सजदा करो और न चाँद को, और उस अल्लाह को सजदा करो, जिसने उन्हें पैदा किया है, यदि तुम उसी (अल्लाह) की इबादत करते हो।[11]

तफ़्सीर:

11. अर्थात सच्चा पूज्य अल्लाह के सिवा कोई नहीं है। ये सूर्य, चंद्रमा और अन्य आकाशीय ग्रहें अल्लाह के बनाए हुए हैं। और उसी के अधीन हैं। इसलिए इनको सजदा करना व्यर्थ है। और जो ऐसा करता है, वह अल्लाह के साथ उसकी बनाई हुई चीज़ को उसका साझी बनाता है, जो शिर्क और अक्षम्य पापा तथा अन्याय है। सजदा करना इबादत है, जो अल्लाह ही के लिए विशिष्ट है। इसीलिए कहा कि यदि अल्लाह ही की इबादत करते हो, तो सजदा भी उसी को करो। उसके सिवा कोई ऐसा नहीं जिसे सजदा करना उचित हो। क्योंकि सब अल्लाह के बनाए हुए हैं, सूर्य हो या कोई मनुष्य। सजदा आदर के लिए हो या इबादत (वंदना) के लिए। अल्लाह के सिवा किसी को भी सजदा करना अवैध तथा शिर्क है, जिसाका परिणाम सदैव के लिए नरक है। आयत 38 पूरी करके सजदा करें।

सूरह का नाम : Fussilat   सूरह नंबर : 41   आयत नंबर: 37

فَإِنِ ٱسۡتَكۡبَرُواْ فَٱلَّذِينَ عِندَ رَبِّكَ يُسَبِّحُونَ لَهُۥ بِٱلَّيۡلِ وَٱلنَّهَارِ وَهُمۡ لَا يَسۡـَٔمُونَ۩

फिर यदि वे अभिमान करें, तो जो (फ़रिश्ते) आपके पालनहार के पास हैं, वे रात दिन उसकी पवित्रता का वर्णन करते रहते हैं, और वे थकते नहीं हैं।

सूरह का नाम : Fussilat   सूरह नंबर : 41   आयत नंबर: 38

وَمِنۡ ءَايَٰتِهِۦٓ أَنَّكَ تَرَى ٱلۡأَرۡضَ خَٰشِعَةٗ فَإِذَآ أَنزَلۡنَا عَلَيۡهَا ٱلۡمَآءَ ٱهۡتَزَّتۡ وَرَبَتۡۚ إِنَّ ٱلَّذِيٓ أَحۡيَاهَا لَمُحۡيِ ٱلۡمَوۡتَىٰٓۚ إِنَّهُۥ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٌ

तथा उसकी निशानियों में से है कि आप धरती को सूखी हुई (बंजर) देखते हैं। फिर जब हम उसपर बारिश बरसाते हैं, तो वह हरित हो जाती है और बढ़ने लगती है। निःसंदेह जिस (अल्लाह) ने उसे जीवित किया, वह मुर्दों को अवश्य जीवित करने वाला है। निःसंदेह वह हर चीज़ पर समार्थ्यवान् है।

सूरह का नाम : Fussilat   सूरह नंबर : 41   आयत नंबर: 39

إِنَّ ٱلَّذِينَ يُلۡحِدُونَ فِيٓ ءَايَٰتِنَا لَا يَخۡفَوۡنَ عَلَيۡنَآۗ أَفَمَن يُلۡقَىٰ فِي ٱلنَّارِ خَيۡرٌ أَم مَّن يَأۡتِيٓ ءَامِنٗا يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۚ ٱعۡمَلُواْ مَا شِئۡتُمۡ إِنَّهُۥ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِيرٌ

निःसंदेह जो लोग हमारी आयतों में टेढ़ापन अपनाते हैं, वे हमसे छिपे हुए नहीं हैं। तो क्या जो व्यक्ति आग में डाला जाएगा, वह उत्तम है अथवा जो क़ियामत के दिन निश्चिंत होकर आएगा? तुम जो चाहो करो। निःसंदेह, तुम जो कुछ करते हो, वह उसे ख़ूब देखने वाला है।[12]

तफ़्सीर:

12. अर्थात तुम्हारे मनमानी करने का कुफल तुम्हें अवश्य देगा।

सूरह का नाम : Fussilat   सूरह नंबर : 41   आयत नंबर: 40

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