ٱرۡجِعُوٓاْ إِلَىٰٓ أَبِيكُمۡ فَقُولُواْ يَـٰٓأَبَانَآ إِنَّ ٱبۡنَكَ سَرَقَ وَمَا شَهِدۡنَآ إِلَّا بِمَا عَلِمۡنَا وَمَا كُنَّا لِلۡغَيۡبِ حَٰفِظِينَ
तुम अपने पिता के पास लौट जाओ और कहो, ऐ हमारे पिता! आपके पुत्र ने चोरी की है और हमने वही कहा, जो हमने जाना[28] और हम ग़ैब जानने वाले नहीं थे।[29]
तफ़्सीर:
28. अर्थात राजा का प्याला उसके सामान से निकलते देखा। 29. अर्थात आपको उसके वापस लाने का वचन देते समय यह नहीं जानते थे कि वह चोरी करेगा। (तफ़्सीर क़ुर्तुबी)
सूरह का नाम : Yusuf सूरह नंबर : 12 आयत नंबर: 81
وَسۡـَٔلِ ٱلۡقَرۡيَةَ ٱلَّتِي كُنَّا فِيهَا وَٱلۡعِيرَ ٱلَّتِيٓ أَقۡبَلۡنَا فِيهَاۖ وَإِنَّا لَصَٰدِقُونَ
आप उस बस्ती वालों से पूछ लें, जिसमें हम थे और उस क़ाफ़िले से भी, जिसके साथ हम आए हैं। और निःसंदेह हम बिलकुल सच्चे हैं।
सूरह का नाम : Yusuf सूरह नंबर : 12 आयत नंबर: 82
قَالَ بَلۡ سَوَّلَتۡ لَكُمۡ أَنفُسُكُمۡ أَمۡرٗاۖ فَصَبۡرٞ جَمِيلٌۖ عَسَى ٱللَّهُ أَن يَأۡتِيَنِي بِهِمۡ جَمِيعًاۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلۡعَلِيمُ ٱلۡحَكِيمُ
याक़ूब ने कहा : (ऐसा नहीं है), बल्कि तुम्हारे दिलों ने एक बात बना ली है। इसलिए मेरा काम उत्तम सब्र है। आशा है कि अल्लाह उन सब को मेरे पास ले आएगा। निःसंदेह वही सब कुछ जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है।
सूरह का नाम : Yusuf सूरह नंबर : 12 आयत नंबर: 83
وَتَوَلَّىٰ عَنۡهُمۡ وَقَالَ يَـٰٓأَسَفَىٰ عَلَىٰ يُوسُفَ وَٱبۡيَضَّتۡ عَيۡنَاهُ مِنَ ٱلۡحُزۡنِ فَهُوَ كَظِيمٞ
और वह उनसे वापस फिरा और कहा : हाय अफ़सोस, यूसुफ़ की जुदाई पर! और उसकी दोनों आँखें शोक के कारण सफेद हो गईं। तो वह शोक से भरा हुआ था।
सूरह का नाम : Yusuf सूरह नंबर : 12 आयत नंबर: 84
قَالُواْ تَٱللَّهِ تَفۡتَؤُاْ تَذۡكُرُ يُوسُفَ حَتَّىٰ تَكُونَ حَرَضًا أَوۡ تَكُونَ مِنَ ٱلۡهَٰلِكِينَ
उन्होंने कहा : अल्लाह की क़सम! आप बराबर यूसुफ़ को याद करते रहेंगे, यहाँ तक कि (शोक से) घुल जाएँ या अपना विनाश कर लें।
सूरह का नाम : Yusuf सूरह नंबर : 12 आयत नंबर: 85
قَالَ إِنَّمَآ أَشۡكُواْ بَثِّي وَحُزۡنِيٓ إِلَى ٱللَّهِ وَأَعۡلَمُ مِنَ ٱللَّهِ مَا لَا تَعۡلَمُونَ
उन्होंने कहा : मैं तो अपने दुःख तथा शोक की शिकायत केवल अल्लाह से करता हूँ और मैं अल्लाह की ओर से वह (बात) जानता हूँ, जो तुम नहीं जानते।
सूरह का नाम : Yusuf सूरह नंबर : 12 आयत नंबर: 86
يَٰبَنِيَّ ٱذۡهَبُواْ فَتَحَسَّسُواْ مِن يُوسُفَ وَأَخِيهِ وَلَا تَاْيۡـَٔسُواْ مِن رَّوۡحِ ٱللَّهِۖ إِنَّهُۥ لَا يَاْيۡـَٔسُ مِن رَّوۡحِ ٱللَّهِ إِلَّا ٱلۡقَوۡمُ ٱلۡكَٰفِرُونَ
ऐ मेरे बेटो! जाओ और यूसुफ़ तथा उसके भाई का पता लगाओ। और अल्लाह की दया से निराश न हो। वास्तव में, अल्लाह की दया से वही निराश होते हैं, जो काफ़िर हैं।
सूरह का नाम : Yusuf सूरह नंबर : 12 आयत नंबर: 87
فَلَمَّا دَخَلُواْ عَلَيۡهِ قَالُواْ يَـٰٓأَيُّهَا ٱلۡعَزِيزُ مَسَّنَا وَأَهۡلَنَا ٱلضُّرُّ وَجِئۡنَا بِبِضَٰعَةٖ مُّزۡجَىٰةٖ فَأَوۡفِ لَنَا ٱلۡكَيۡلَ وَتَصَدَّقۡ عَلَيۡنَآۖ إِنَّ ٱللَّهَ يَجۡزِي ٱلۡمُتَصَدِّقِينَ
फिर जब (यूसुफ़ के भाई) उनके पास (मिस्र) गए, तो कहा : ऐ अज़ीज़! हमपर और हमारे घर वालों पर विपत्ति (अकाल) आ पड़ी है और हम थोड़ा-सा धन (मूल्य) लाए हैं। लेकिन हमें पूरी-पूरी माप प्रदान करें और हमें दान (भी) दें। निःसंदेह अल्लाह दान करने वालों को बदला देता है।
सूरह का नाम : Yusuf सूरह नंबर : 12 आयत नंबर: 88
قَالَ هَلۡ عَلِمۡتُم مَّا فَعَلۡتُم بِيُوسُفَ وَأَخِيهِ إِذۡ أَنتُمۡ جَٰهِلُونَ
यूसुफ़ ने कहा : क्या तुम्हें ज्ञात है कि तुमने यूसुफ़ तथा उसके भाई के साथ क्या कुछ किया, जब तुम नासमझ थे?
सूरह का नाम : Yusuf सूरह नंबर : 12 आयत नंबर: 89
قَالُوٓاْ أَءِنَّكَ لَأَنتَ يُوسُفُۖ قَالَ أَنَا۠ يُوسُفُ وَهَٰذَآ أَخِيۖ قَدۡ مَنَّ ٱللَّهُ عَلَيۡنَآۖ إِنَّهُۥ مَن يَتَّقِ وَيَصۡبِرۡ فَإِنَّ ٱللَّهَ لَا يُضِيعُ أَجۡرَ ٱلۡمُحۡسِنِينَ
उन्होंने कहा : क्या निश्चय वास्तव में आप ही यूसुफ़ हैं? यूसुफ़ ने कहा : मैं यूसुफ़ हूँ और यह मेरा भाई है। निश्चय अल्लाह ने हमपर उपकार किया है। निःसंदेह जो (अल्लाह से) डरता है तथा धैर्य रखता है, तो अल्लाह सदाचारियों का प्रतिफल नष्ट नहीं करता।
सूरह का नाम : Yusuf सूरह नंबर : 12 आयत नंबर: 90