कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

ٱتَّبِعُواْ مَن لَّا يَسۡـَٔلُكُمۡ أَجۡرٗا وَهُم مُّهۡتَدُونَ

तुम उनका अनुसरण करो, जो तुमसे कोई पारिश्रमिक (बदला) नहीं माँगते तथा वे सीधे मार्ग पर हैं।

सूरह का नाम : Ya-Sin   सूरह नंबर : 36   आयत नंबर: 21

وَمَا لِيَ لَآ أَعۡبُدُ ٱلَّذِي فَطَرَنِي وَإِلَيۡهِ تُرۡجَعُونَ

तथा मुझे क्या हुआ है कि मैं उसकी इबादत न करूँ, जिसने मुझे पैदा किया है और तुम (सब) उसी की ओर लौटाए जाओगे?[8]

तफ़्सीर:

8. अर्थात मैं तो उसी की इबादत करता हूँ और करता रहूँगा। और उसी की इबादत करनी भी चाहिए। क्योंकि वही इबादत किए जाने के योग्य है। उसके अतिरिक्त कोई इबादत के योग्य हो ही नहीं सकता।

सूरह का नाम : Ya-Sin   सूरह नंबर : 36   आयत नंबर: 22

ءَأَتَّخِذُ مِن دُونِهِۦٓ ءَالِهَةً إِن يُرِدۡنِ ٱلرَّحۡمَٰنُ بِضُرّٖ لَّا تُغۡنِ عَنِّي شَفَٰعَتُهُمۡ شَيۡـٔٗا وَلَا يُنقِذُونِ

क्या मैं उसे छोड़कर दूसरे पूज्य बना लूँ? यदि रहमान (अत्यंत दयावान् अल्लाह) मुझे कोई हानि पहुँचाना चाहे, तो उनकी सिफ़ारिश मुझे कुछ लाभ नहीं पहुँचा सकेगी और न वे मुझे बचा सकेंगे।

सूरह का नाम : Ya-Sin   सूरह नंबर : 36   आयत नंबर: 23

إِنِّيٓ إِذٗا لَّفِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٍ

निःसंदेह मैं उस समय खुली गुमराही में हूँगा।

सूरह का नाम : Ya-Sin   सूरह नंबर : 36   आयत नंबर: 24

إِنِّيٓ ءَامَنتُ بِرَبِّكُمۡ فَٱسۡمَعُونِ

निःसंदेह मैं तुम्हारे पालनहार पर ईमान ले आया। अतः मेरी बात सुनो।

सूरह का नाम : Ya-Sin   सूरह नंबर : 36   आयत नंबर: 25

قِيلَ ٱدۡخُلِ ٱلۡجَنَّةَۖ قَالَ يَٰلَيۡتَ قَوۡمِي يَعۡلَمُونَ

(उससे) कहा गया : जन्नत में प्रवेश कर जा। उसने कहा : काश मेरी जाति भी जान लेती!

सूरह का नाम : Ya-Sin   सूरह नंबर : 36   आयत नंबर: 26

بِمَا غَفَرَ لِي رَبِّي وَجَعَلَنِي مِنَ ٱلۡمُكۡرَمِينَ

कि मेरे पालनहार ने मुझे क्षमा[9] कर दिया और मुझे सम्मानित लोगों में शामिल कर दिया।

तफ़्सीर:

9. अर्थात एकेश्वरवाद तथा अल्लाह की आज्ञा के पालन पर धैर्य के कारण।

सूरह का नाम : Ya-Sin   सूरह नंबर : 36   आयत नंबर: 27

۞وَمَآ أَنزَلۡنَا عَلَىٰ قَوۡمِهِۦ مِنۢ بَعۡدِهِۦ مِن جُندٖ مِّنَ ٱلسَّمَآءِ وَمَا كُنَّا مُنزِلِينَ

तथा हमने उसके पश्चात् उसकी जाति पर आकाश से कोई सेना नहीं उतारी और न हम उतारने वाले थे।[10]

तफ़्सीर:

10. अर्थात यातना देने के लिए हम सेनाएँ नहीं उतारते।

सूरह का नाम : Ya-Sin   सूरह नंबर : 36   आयत नंबर: 28

إِن كَانَتۡ إِلَّا صَيۡحَةٗ وَٰحِدَةٗ فَإِذَا هُمۡ خَٰمِدُونَ

वह तो मात्र एक तेज़ आवाज़ (चिंघाड़) थी। फिर एकाएक वे बुझे हुए थे।[11]

तफ़्सीर:

11. अर्थात एक चीख़ ने उनको बुझी हुई राख के समान कर दिया। इससे ज्ञात होता है कि मनुष्य कितना निर्बल है।

सूरह का नाम : Ya-Sin   सूरह नंबर : 36   आयत नंबर: 29

يَٰحَسۡرَةً عَلَى ٱلۡعِبَادِۚ مَا يَأۡتِيهِم مِّن رَّسُولٍ إِلَّا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ

हाय अफसोस है[12] बंदों पर! उनके पास जो भी रसूल आता, वे उसका उपहास किया करते थे।

तफ़्सीर:

12. अर्थात प्रलय के दिन रसूलों का उपहास बंदों के लिए अफसोस का कारण होगा।

सूरह का नाम : Ya-Sin   सूरह नंबर : 36   आयत नंबर: 30

नूजलेटर के लिए साइन अप करें