कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

أَلَمۡ يَرَوۡاْ كَمۡ أَهۡلَكۡنَا قَبۡلَهُم مِّنَ ٱلۡقُرُونِ أَنَّهُمۡ إِلَيۡهِمۡ لَا يَرۡجِعُونَ

क्या उन्होंने नहीं देखा कि हमने उनसे पहले कितने ही समुदायों को विनष्ट कर दिया कि वे उनकी ओर लौटकर नहीं आएँगे।

सूरह का नाम : Ya-Sin   सूरह नंबर : 36   आयत नंबर: 31

وَإِن كُلّٞ لَّمَّا جَمِيعٞ لَّدَيۡنَا مُحۡضَرُونَ

तथा वे जितने भी हैं सबके सब हमारे सामने उपस्थित किए जाएँगे।[13]

तफ़्सीर:

13. प्रलय के दिन ह़िसाब तथा बदले के लिए।

सूरह का नाम : Ya-Sin   सूरह नंबर : 36   आयत नंबर: 32

وَءَايَةٞ لَّهُمُ ٱلۡأَرۡضُ ٱلۡمَيۡتَةُ أَحۡيَيۡنَٰهَا وَأَخۡرَجۡنَا مِنۡهَا حَبّٗا فَمِنۡهُ يَأۡكُلُونَ

तथा उनके[14] लिए एक बड़ी निशानी मृत भूमि है। हमने उसे जीवित किया और उससे अन्न निकाला। तो वे उसी में से खाते हैं।

तफ़्सीर:

14. यहाँ एकेश्वरवाद तथा आख़िरत (परलोक) के विषय का वर्णन किया जा रहा है। जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तथा मक्का के काफ़िरों के बीच विवाद का कारण था।

सूरह का नाम : Ya-Sin   सूरह नंबर : 36   आयत नंबर: 33

وَجَعَلۡنَا فِيهَا جَنَّـٰتٖ مِّن نَّخِيلٖ وَأَعۡنَٰبٖ وَفَجَّرۡنَا فِيهَا مِنَ ٱلۡعُيُونِ

तथा हमने उसमें खजूरों और अंगूरों के कई बाग बनाए और उनमें कई जल स्रोत प्रवाहित कर दिए।

सूरह का नाम : Ya-Sin   सूरह नंबर : 36   आयत नंबर: 34

لِيَأۡكُلُواْ مِن ثَمَرِهِۦ وَمَا عَمِلَتۡهُ أَيۡدِيهِمۡۚ أَفَلَا يَشۡكُرُونَ

ताकि वे उसके फल खाएँ, हालाँकि उसे उनके हाथों ने नहीं बनाया है। तो क्या वे आभार प्रकट नहीं करते?

सूरह का नाम : Ya-Sin   सूरह नंबर : 36   आयत नंबर: 35

سُبۡحَٰنَ ٱلَّذِي خَلَقَ ٱلۡأَزۡوَٰجَ كُلَّهَا مِمَّا تُنۢبِتُ ٱلۡأَرۡضُ وَمِنۡ أَنفُسِهِمۡ وَمِمَّا لَا يَعۡلَمُونَ

पवित्र है वह अस्तित्व जिसने सभी जोड़े पैदा किए, उन चीज़ों के भी जिन्हें धरती उगाती है, और स्वयं उन (मनुष्यों) के अपने भी, और उनके भी जिन्हें वे नहीं जानते।

सूरह का नाम : Ya-Sin   सूरह नंबर : 36   आयत नंबर: 36

وَءَايَةٞ لَّهُمُ ٱلَّيۡلُ نَسۡلَخُ مِنۡهُ ٱلنَّهَارَ فَإِذَا هُم مُّظۡلِمُونَ

तथा एक निशानी उनके लिए रात है। जिससे हम दिन को खींच लेते हैं, तो एकाएक वे अंधेरे में हो जाते हैं।

सूरह का नाम : Ya-Sin   सूरह नंबर : 36   आयत नंबर: 37

وَٱلشَّمۡسُ تَجۡرِي لِمُسۡتَقَرّٖ لَّهَاۚ ذَٰلِكَ تَقۡدِيرُ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡعَلِيمِ

तथा सूर्य अपने नियत ठिकाने की ओर चला जा रहा है। यह प्रभुत्वशाली, सब कुछ जानने वाले (अल्लाह) का निर्धारित किया हुआ है।

सूरह का नाम : Ya-Sin   सूरह नंबर : 36   आयत नंबर: 38

وَٱلۡقَمَرَ قَدَّرۡنَٰهُ مَنَازِلَ حَتَّىٰ عَادَ كَٱلۡعُرۡجُونِ ٱلۡقَدِيمِ

तथा चाँद की हमने मंज़िलें निर्धारित कर दी हैं। यहाँ तक कि वह फिर खजूर की पुरानी सूखी टेढ़ी टहनी के समान हो जाता है।

सूरह का नाम : Ya-Sin   सूरह नंबर : 36   आयत नंबर: 39

لَا ٱلشَّمۡسُ يَنۢبَغِي لَهَآ أَن تُدۡرِكَ ٱلۡقَمَرَ وَلَا ٱلَّيۡلُ سَابِقُ ٱلنَّهَارِۚ وَكُلّٞ فِي فَلَكٖ يَسۡبَحُونَ

न तो सूर्य ही से हो सकता है कि चाँद को जा पकड़े और न रात ही दिन से पहले आने वाली है। और सब एक-एक कक्षा में तैर रहे हैं।

सूरह का नाम : Ya-Sin   सूरह नंबर : 36   आयत नंबर: 40

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